जानिए संचित कर्म क्या होते हैं?

धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्रों में कहा गया है कि कर्म के बगैर गति नहीं। सनातन धर्म भाग्यवादियों का धर्म नहीं है। वेद, उपनिषद और गीता- तीनों ही कर्म को कर्तव्य मानते हुए इसके महत्व को बताते हैं। यही पुरुषार्थ है।श्रेष्ठ और निरंतर कर्म किए जाने या सही दिशा में सक्रिय बने रहने से ही पुरुषार्थ फलित होता है। इसीलिए कहते हैं कि काल करे सो आज कर। वेदों में कहा गया है कि समय तुमको बदले इससे पूर्व तुम ही स्वयं को बदल लो- यही कर्म का मूल सिद्धांत है। अन्यथा फिर तुम्हें प्रकृति या दूसरों के अनुसार ही जीवन जीना होगा। # धर्म शास्त्रों में मुख्यत: छह तरह के कर्म का उल्लेख मिलता है- 1.नित्य कर्म (दैनिक कार्य), 2.नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य), 3.काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य), 4.निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य), 5.संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) और 6.निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)। # क्या है संचित कर्म? हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह...