क्यों होती है जगन्नाथ रथ यात्रा , जानिए विस्तार में
पिछले पाँचसो सालो से भी ज्यादा भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकाले जाने की परंपरा है। यह एक विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा है। इस रथयात्रा का उत्सव आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह यात्रा 14 जुलाई 2018 से शुरू होने वाली है। इस रथयात्रा में भगवान श्री जगन्नाथ जी को रथ पर बिठाते है और पूरे नगर में भ्रमण कराते है ।
तो आइए जानते है विस्तार में की कैसे और क्या कहानी है जगन्नाथ रथ यात्रा की
जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुवात भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ के सामने सोने के हत्थे वाली झाडू को लगाकर किया जाता है। और इस के बाद में बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष किया जाता है और रथ यात्रा की शुरुवात की जातो है। कई सारे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की आवाज के साथ विशाल रथों को हज़ारो लोग मोटे-मोटे रस्सों की मदद से खींचते हैं।
शुरुवात में भगवान श्री बलभद्र जी का रथ प्रस्थान करता है।
और उनके बाद में उनकी बहन माता सुभद्रा जी का रथ चलना शुरू होता है।
सबसे आखिर में भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक लोग खींचना शुरू करते हैं।
भगवान को उनके मौसी के घर स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। और उसके बाद जब भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं, तो उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है और इससे वो जल्दी ठीक हो जाते हैं।
रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूंढ़ते हुए यहां आती हैं। लेकिन द्वैतापति के दरवाजा बंद करने पर वो नाराज होकर रथ का पहिया तोड़कर हेरा गोहिरी साही' पुरी का एक मुहल्ला जहां लक्ष्मी जी का मंदिर है, माता वहां लौट आती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर संपन्न होती है। इसी मंदिर में भगवान श्री विश्वकर्मा जी ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
इसी मंदिर को 'गुंदेचा बाड़ी' भी कहते हैं। इसी जगह को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। सूर्यास्त तक अगर रथ गुंदेचा मंदिर नहीं पहुंच पाता तो वह अगले दिन अपनी यात्रा पूरी करता है। इस मंदिर में भगवान एक हफ्ते तक रहते हैं। यहाँ उनकी पूजा अर्चना की जाती है। भगवान श्री जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी जी को मनाने वहां जाते हैं। ऐसी मान्यता है की वहां वो उनसे क्षमा मांगने के साथ कई तरह के उपहार देकर प्रसन्न करने की कोशिश भी करते रहते हैं।
माता लक्ष्मी जी को भगवान श्री जगन्नाथ जी के द्वारा मना लिए जाने को विजय का प्रतीक मानकर इस दिन को विजया दशमी और वापसी को बोहतड़ी गोंचा के रूप में मनाया जाता है। 9 दिन पूरे होने के बाद भगवान जगन्नाथ, जगन्नाथ मंदिर वापस चले जाते हैं। हर साल यह क्रम निरंतर जारी रहता है।
हर हर महादेव
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